प्रज्ञा को यश की राह देखते हुए काफ़ी वक़्त हो जाता है, लेकिन ना तो यश आता है और ना ही तूफ़ान और बारिश थमती है। अविनाश विहान को लेजाकर अंदर सुला चुका होता है और अपना फोन लिए बार बार किसी को कॉल करने की कोशिश कर रहा होता है लेकिन नेटवर्क की वजह से कहीं कॉल लगती ही नहीं। इतना तेज़ तूफ़ान और उस भयानक रात को देखकर अब अविनाश के मन मे भी डर की गिनती कहीं ना कहीं शुरू ही हो जाती है। प्रज्ञा बेचैन घर मे इधर से उधर तेज़-तेज़ घूमकर बार-बार दरवाज़े को खोलकर देख रही होती