एक फकीर हुआ, एक व्यक्ति निरंतर उसके पास आता था। एक दिन आकर उस व्यक्ति ने उस फकीर को पूछा : आपका जीवन इतना पवित्र हे आपके जीवन में इतनी सात्विकता है आपके जीवन में इतनी शांति है लेकिन मेरे मन में यह प्रश्न उठता है कि कहीं यह सब ऊपर ही ऊपर तो नहीं है? कहीं ऐसा तो नहीं है कि भीतर मन में विकार भी चलते हों भीतर मन में वासनएं भी चलती हों भीतर पाप भी चलता हो अपवित्रता भी चलती हो भीतर बुराइयां भी हों भीतर अंधकार भी हो अशांति भी हो चिंता भी हो और