समय के साथ साथ वो सब भूल गयी। बाबा के पिता ने भी उसे कुछ भी न बताया और वो भी अपनी गृहस्थी में रमने की कोशिश करने लगा। उस अघोरी को वो कभी नही भूला था और न ही उसकी कही बातों को। वो हमेशा अंदर से डरा ही रहता अपने आने वाले बच्चे के बारे में सोच कर पर इसे नियति का खेल मानकर अपने को झूठी तसल्ली देता रहता। सही समय पर बालक ने जन्म लिया और धीरे धीरे सभी बच्चों की तरह ही बड़ा होने लगा वो पूरी तरह स्वस्थ और बुद्धिमान था। पर जैसे ही