सूर्यप्रभा, राजकुमार का प्रेम देखकर द्रवित हो उठी,वो स्वयं को भाग्यशाली समझ रही थी,परन्तु उसे अब ये संदेह हो रहा था कि अम्बालिका राजकुमार के मार्ग मे अवश्य अवरोध उत्पन्न करेंगी, जिससे वें यहाँ ना पहुँच पाएं और मैं इस रूप में हूँ कि मेरी स्वयं की माँ भी मुझसे अपरिचित हैं कि मैं ही उनकी बेटी हूँ, समझ मैं नहीं आ रहा कि ऐसा क्या करूँ, जिससे मैं अपने पूर्व रूप में आ सकूँ।। तभी रानी जलकुम्भी भी अम्बालिका की आहट सुनकर जाग उठी और रात्रि में अम्बालिका को मैना के पिंजरे के निकट खड़ा हुआ देखकर बोली___