चन्द्र-प्रभा--भाग(१२)

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और फिर उस वृद्ध ने कहा कि मैं अपने घर पहुंचा, मुझे इतने दिनों बाद देखकर घरवालों को अत्यधिक प्रसन्नता हुई,मेरी पत्नी तो फूली ना समाई और बोली, मैं तुम्हें अब से कुछ नहीं कहूंगी,पर तुम मुझे छोड़कर कहीं मत जाना।। मैंने रात्रि होने तक प्रतीक्षा की और रात्रि के दूसरे पहर में मैं उठा,देखा तो सब गहरी निंद्रा में लीन थे, मैंने एक कुल्हाड़ी उठाई, सर्वप्रथम अपने माता-पिता की हत्या की इसके उपरांत पत्नी की हत्या करके उसका रक्त एक कलश में भरकर अम्बालिका के लिए लेकर शीशमहल की ओर चल पड़ा।। अम्बालिका के पास जब मैं