चन्द्र-प्रभा--भाग(६)

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सूर्यप्रभा मैना के रूप मे पिंजरे मे छटपटाती रही लेकिन पिंजरे से निकल नहीं पाई,उसके नयनों से बहती हुई अविरल अश्रुओं की धारा से यह प्रतीत हो रहा था कि वो बहुत विवश थी,अत्यधिक प्रयास करने के उपरान्त भी वो स्वयं को ना छुड़ा सकी और उस छाया ने उसे श्रापित शीशमहल में पहुंचा दिया।। वहाँ उस सुनसान से महल का वातावरण सूर्यप्रभा को भयभीत कर गया किन्तु उसने अपने साहस को कम ना होने दिया,उसने प्रांगण से होते हुए,महल के भीतर प्रवेश किया, सिवाय अंधकार के वहाँ कुछ भी ना था,तभी उसे ध्यान आया कि प्रांगण मे तो