उजाले की ओर ---श्रद्धांजलि --- -------------------------------- आएँ हैं तो जाएँगे ,राजा-रंक-फकीर --------------------------------- जीवन के इस किनारे पर आकर उपरोक्त पंक्ति का सत्य समझ में आने लगता है और मन जीवन की वास्तविकता को स्वीकार करने लगता है मन में आता है जाने-अनजाने हुई त्रुटियों की सबसे क्षमा माँग ली जाए ,न जाने कौनसा क्षण हो जब -- जब मनुष्य के हाथ में ही कुछ नहीं तो कर क्या लेंगे ? केवल इसके कि परिस्थितियों में विवेकी बनकर रह सकें फिर भी आसान नहीं होता कुछ परिस्थितियों को सहज ही ले लेना कहीं न कहीं बेचेनी