आज घंटों आईने के सामने खड़े होकर खुद को निहारती रही । थोड़ी देर बाद सुनी आंखों में काजल लगाई थोड़ा क्यू रूक गई पता नहीं चला और यूं ही हाथ बिंदी के पत्तों पर चले गए सोचा लगा लूं ;तुमको मेरे माथे में बिंदी पसंद थी ना ! मैं हमेशा चाहती थी कि आईना मुझे बिना काजल बिना बिंदी लगाए पसंद करें पर मुझे शायद अपनी ही यह अक्स पसंद नहीं आया । मैं कब खुद को छुपाने लगी और खामोश हो गई मुझे याद ही नहीं । पढ़ना चाहती थी. .खुले आसमान में उड़ने के सपने देखती थी पर