सोहबत

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सोहबत पिताजी की आवाज नीरवता को भंग करती चली गई। वे जोर से चिल्ला रहे थे-"क्या कहा, तू आगे नहीं पढ़ेगा ? पढ़ेगा नहीं तो और क्या करेगा? तू चोरी करेगा? या हराम की खाएगा?" रात गहराने लगी थी। सब लोग सोने की तैयारी कर रहे थे , वहीं अरविन्द के घर में कलह मची हुई थी। अचानक उसके रात्रि ने पूरा वातावरण अपने आगोश में ले लिया था। चारों ओर नीरवता और सन्नाटे के साथ-साथ अन्धकार छाया हुआ था। भय से काँपते हुए बारह वर्षीय अरविन्द ने कहा-"पिताजी मेरा मन पढ़ने में नहीं लगता। मैं आगे पढ़ना नहीं चाहता।"