एक लड़की की कहानी मेरी ज़ुबानी - 2

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मेरी हिम्मत नहीं पड़ रही है कि मैं उस से सच कहूं कि वो अब कभी भी अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो सकेगा और धीरे-धीरे mental condition भी बिगड़ती जाएगी। कैसे मैं उसे ये सच कहूं बच्चा है, वो मेरा....... बच्चा......हैं....। शायद आप इतने पत्थर दिल हो मैं नहीं, रवि कि मम्मी शांत हो जाओ, तुम तो रो सकती हो, चिल्ला सकती हो। थोड़ा मेरा तो सोचो मैं किससे कहूं कहां जाकर अपना सिर मारूं? तुम्हारा ही नहीं मेरा भी बेटा है, मुझे क्यों भूल जाती हो। बोलो.... मैं क्या करूं.... बोलो मैं क्या करूं........ रवि के पापा!! रवि