जुर्रत

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जुर्रत कोठी कैम्पस का सन्नाटा बच्चों के शोरगुल से टूट गया। सारे बच्चे मजे करने के लिए कोठी की चहारदीवारी फांद के भीतर जा पहुँचे थेबच्चों की छुट्टियों के दिन थे। परीक्षा की चिन्ता के बाद उनके चेहरों पर मुक्ति और स्वच्छन्दता की आभा बिखर रही थी। अवकाश का जो समय मिला था उसमें ऐसा लग रहा था कि वे अपने अन्दर संजोये सारे करतब दिखाकर ही रहेंगे। हालांकि बहुत गर्मी पड़ रही थी किन्तु तपती धूम में भी उन्हें खेल खेलने से फुरसत नहीं थी। घर में थोड़ी देर टिकना भी वे गुनाह समझते थे। खाना भी खाया तो