‘‘पुतला’’ मैं पुतला हूँ। यदि आप न समझें हो तो मैं वही पुतला हूँ, जो दशहरे में रावण के रूप में और होली में होलिका के रूप में अनेक वर्षों से जलता रहा हूँ। मेरे अंगों के रूप में कुछ बांस, थोड़ी-थोड़ी घास-फूस, कुछ कागज और एक अदद मुखौटा होता है। मेरी नियति अनेक वर्षों से केवल एक हैं- ‘‘जलना’’। आज के समय में मैं राजनीति में बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखता हूँ। जब भी किसी को किसी अन्य पार्टी के नेता से जलन होने लगती है तो वे अपनी जलन को शांत करने के लिए मुझ