’’पप्पन, ओ पप्पन,’’ पड़ोस की पुकारों ने मुझे जगा दिया। मैं झुंझलाकर उठ बैठी और बड़बड़ाने लगी, ’’उफ, ये गंवार और अशिक्षित लोग। चैन की नींद तक नहीं लेने देते।’’ मुझे अपने पड़ोसी बिल्कुल पंसद नहीं थे। दिन भर छोटे बच्चों का रोना, मांओ का चिल्लाना और अशिष्ट व्यवहार। हां, एक पसंद था उन सभी में पप्पन। कोई आठ-नौ बरस का बच्चा। केवल नाम के लिए स्कूल जाता था यानि रूपए में साठ पैसे तो घर पर ही रहता। कुछ भी हो वह मुझे बहुत सुंदर और सुशील लगता था। गोरा, स्वपनिल आंखों वाला पप्पन सदा ही अपने गुलाबी होंठों