गांव की तलाश 2 काव्य संकलन- वेदराम प्रजापति ‘’मनमस्त’’ - समर्पण – अपनी मातृ-भू के, प्यारे-प्यारे गांवों को, प्यार करने वाले, सुधी चिंतकों के, कर कमलों में सादर। वेदराम प्रजापति ‘’मनमस्त’’ -दो शब्द- जीवन को स्वस्थ्य और समृद्ध बनाने वाली पावन ग्राम-स्थली जहां जीवन की सभी मूलभूत सुविधाऐं प्राप्त होती हैं, उस अंचल में आने का आग्रह इस कविता संगह ‘गांव की तलाश ’में किया गया है। यह पावन स्थली श्रमिक और अन्नदाताओं के श्रमकणों से पूर्ण समृद्ध है जिसे एक बार आकर अवश्य देखने का प्रयास