अहिंसा, महानता का प्रथम चरण है। अहिंसा का हमारे व्यक्तित्व निर्माण में सबसे प्रमुख स्थान है। सामान्यतः अहिंसा का अर्थ किसी निरपराध प्राणी को सताने अथवा शारीरिक कष्ट न पहुंचाने तक ही सीमित रखा जाता है। वास्तव में, यह अहिंसा का शाब्दिक अर्थ मात्र है। यदि बृहद दृष्टिकोण से विचार करें तो, किसी व्यक्ति के लिए कुविचार व्यक्त करना, मिथ्या भाषण करना, आपस में द्वेष करना, किसी का बुरा चाहना, प्रकृति में उपस्थित सर्व सुलभ वस्तुओं पर अनाधिकृत रूप से अतिक्रमण करना तथा उन पर स्वार्थवश कब्जा कर लेना भी हिंसा की श्रेणी में ही आता है। जो व्यक्ति इन हिंसक प्रवृत्तियों