अपना लैटर पोस्ट कर मैं आफिस पहुंचा।जैसे-तैसे दिन बिताया रात निकाली।अगले दिन बड़े उत्साह के साथ मैं आफिस पहुंचा।अरे अपनी..!!!...... नही, नही अपनी क्या..?मेरी भावना का लैटर जो आया होगा। जैसे मैं आफिस में घुसा मैंने अपनी खोजी नज़रो से सबसे पहले पवन को खोजा।इधर-उधर नज़र घुमा ही रहा था कि आफिस के कोने में खड़ा चाय पीते पवन बाबू नज़र आये।चाय देखकर तो मैं एक पल के लिए भावना और उसके लैटर को भी भूल गया था। मैं तुरंत पवन बाबू के पास पहुंचा।भावना का लैटर लेने के लिए।अब कुछ भी कहो अगर हम कुछ खा-पी रहे होते हैं