अंतिम यात्रा या अंतर्यात्रा

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मेदान्ता हॉस्पिटल की आई सी यू लॉबी में सब नाते रिश्तेदारों की भीड़ जमा थी। दौड़ते भागते फुसफुसाते चेहरों में एक भी अपना सा चेहरा नही लग रहा था। एक कुर्सी पर कोने में खामोशी से बैठा मैं कोई एक कन्धा खोज रहा था जिस पर सिर रख कर आँसूं बहा सकूँ।मैं एक सुच्चे मोती को अपनी मुट्ठी से फिसलकर समंदर में विलीन होते खामोशी से देख रहा था। मेरे हाथ सिर्फ सीप थी जो प्रस्तर खंडो की तरह फिसलते हुए रेत में घुल जाना चाहती थी। कितना मुश्किल समय है आज ये मेरे लिए। 60 बरस का हमारा साथ रहा।