काली धूप- सुभाष नीरव (अनुवाद)

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जब किसी दुख भरी कहानी को पढ़ कर आप उस दुःख.. उस दर्द..उस वेदना को स्वयं महसूस करने लगें। पढ़ते वक्त चल रहे हालातों को ना बदल पाने की अपनी बेबसी पर कुंठित हो..कभी आप तिलमिला उठें छटपटाते रहें या कभी सिर्फ सोच कर ही आप सहम जाएँ और आपके रौंगटे खड़े होने लगें। कहानी को पूरा पढ़ने के बाद भी आप घंटों तक उसी कहानी..उसी माहौल और उन्हीं घटनाओं के बीच पात्रों की बेबसी और मायूसी के बारे में सोच कर कसमसाते हुए उन्हीं की जद्दोजहद में अपने अंतःकरण तक डूबे रहें। तो इसे एक लेखक की सफलता कहेंगे