इंसानियत - एक धर्म - 37

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असलम ने रजिया के हाथ से पानी का गिलास थामते हुए रहमान चाचा की तरफ देखा । उनके चेहरे के भाव बदले हुए थे । वह उनके चेहरे के भावों को पढ़ने की कोशिश करते हुए पानी पीने लगा । अचानक रहमान चाचा की गंभीर आवाज फिजां में गूंज उठी ” तुम सही कह रहे हो बेटा ! मैं ही भटक गया था । भुल गया था कि एक और एक मिलकर दो नहीं ग्यारह होते हैं । तुमने मेरी आँखें खोल दीं । उस दिन अगर नारंग साहब ने मेरे बेटे आमिर को समय से अस्पताल नहीं पहुंचाया होता