पथभ्रमित जबलपुर शहर में हरिप्रसाद नाम का एक व्यापारी अपनी पत्नी और बच्चों के साथ सुख एवं शांतिपूर्वक जीवन व्यतीत कर रहा था। वह बहुत भावुक एवं धार्मिक प्रवृत्ति का था और उसके मन में मोक्ष प्राप्त करने की बहुत गहरी अभिलाषा थी। वह प्रतिदिन इसी चिंतन में उलझा रहता था। एक दिन रात में अचानक ही उसके मन में विचार आया कि जब तक वह माया और मोह को नही छोडेगा तब तक मोक्ष नही प्राप्त होगा। इसी सनक में एक दिन प्रातःकाल उठकर वह बिना किसी को बताए अपने पास संचित धन को बाँट देता है और