रात को एक ढाबे में खाना खाने के बाद मैं और तन्मय पुष्कर से निकल कर जाती उस वीरान सड़क पर बहुत देर तक घूमते रहे जो इन दिनों पर्यटकों की आमद कम हो जाने के चलते सुनसान सी ही हो जाती थी। दोपहर यहां पहुंचने के साथ ही हमने इस क्षेत्र के लगभग ख़ाली पड़े हुए इन कॉटेज में एक कमरा ले लिया था और शाम तक पुष्कर के मंदिरों और बाज़ार की ख़ूब सैर की। मैं मेले या त्यौहार के दिनों में भी कई बार पुष्कर आ चुका था जब यहां बहुत भीड़ भाड़ रहती थी और सरोवर