-उपन्यास भाग—बारह अन्गयारी आँधी—१२ --आर. एन. सुनगरया, ..........कार अपनी स्वभाविक गति से चलती जा रही है। मगर अन्दर बैठे स्वरूपा-शक्ति का मौन, मानसिक कष्ट का कारण बनकर असहनीय होता जा रहा