मैं तो ओढ चुनरिया अध्याय नौ टेढी मेढी पगडंडियों वाली सर्पाकार सङकें , जो ग्रामवधु की तरह घूँघट में से झांक कर फिर दामन की ओट में हो जाती हैं । एक तरफ पहाङ , दूसरी ओर कई किलोमीटर गहरी खाइयाँ । हर तरफ हरियाली । आम और लीची के पेङ , लौकाट और अखरोट के पेङ । लहराती हुई मक्का की फसल । एक तरफ प्रकृति अपना मरकत का खजाना खोले मणियाँ बिखेर रही थी । दूसरी ओर गहरी खाई यमराज की सहेली लगती । जरा सी असावधानी से बस गहरी खाई में समा सकती थी