बैंगन - 18

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मैं दोपहर बाद हड़बड़ा कर मंदिर में पहुंचा तो पुजारी जी कुछ भक्तों को प्रसाद देने में व्यस्त थे। मुझे देखते ही पुजारी जी, तन्मय के पिता आरती की थाली एक ओर रखकर मुस्कुराते हुए मेरे करीब आए तो नज़दीक आते ही चौंक गए। शायद मेरी परेशानी उन्होंने भी भांप ली थी। मैंने बिना किसी भूमिका के जल्दी जल्दी उन्हें बताया कि सुबह का गया हुआ तन्नू अब तक नहीं लौटा है जबकि अब तो चार बजने वाले हैं। पुजारी जी भौंचक्के होकर मेरी ओर देखने लगे। उन्हें तो शायद ये भी मालूम नहीं था कि तन्मय कहां गया था,