हरिवंश राय बच्चन की कविता पढ़ते-पढ़ते एक कहानी याद आई ; वही बचपन वाली "खरगोश और कछुआ" की कहानी | मुझे इन से बेहतर कोई नायक नहीं मिला | ज़िंदगी की दौड़ किसी खरगोश और कछुआ की रेस से कम थोड़े ही है, बहुत कुछ समझा जाती है यह रेस | मेरे लिए शायद यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि मैंने अपनी पूरी लाइफ में सबसे पहले इसी कहानी से सीखा है जैसे जिंदगी की प्रथम पाठशाला स्कूल होता है ठीक वैसे ही मेरी लाइफ की पहली नैतिक शिक्षा वाली कहानी यही है | इस बार कहानी में थोड़ा परिवर्तन