-उपन्यास भाग—दस अन्गयारी आँधी—१० --आर. एन. सुनगरया, नदी की धारा कभी सीधी रेखा में नहीं बहती। टेड़े-मेड़े, ऊँचे-नीचे, पथरीले, मैदानी पहाड़, पर्वतों, झाड़-झंकाड़, झाडि़यों के झुरमुट से होकर गुजरती हुयी अपनी मंजिल की ओर बढ़ती जाती है, निरन्तर हर हाल