सुधा ओम ढींगरा उसका दिल आज बहुत बेचैन है, किसी भी तरह काबू में नहीं आ रहा, तबियत बहुत उखड़ी हुई और भीतर जैसे कुछ टूटता सा महसूस हो रहा है। सुबह के पाठ में भी मन नहीं रमा। चित्त स्थिर नहीं हो पा रहा। भीतर- बाहर की घुटन जब बढ़ गई, तो वह अपने बिस्तर से उठ गया। कमरे की खिड़की खोली, ताज़ी हवा का झोंका आया, पर अस्थिरता बढ़ती गई। वह कमरे में ठहर नहीं सका। बाहर दलान में आ गया। उजाला दबे पाँव फैलने की कोशिश कर रहा था। धुँधली रौशनी में, वह अपनी नवार की मंजी