-जिंदगी की राह- आज दिल की कह रहा हूँ, सुन सको तो, बात साही। जिंदगी की राह में, भटका हुआ है, आज राही।। बंध रहा भ्रमपाश में तूँ, कीर-सा उल्टा टंगा है। और खग हाडि़ल समां भी, टेक हरू, रंग में रंगा है। यूँ रहा अपनी जगह, और शाज बजते, आज शाही।। तूँ अकेला कर्म पथ पर, और तो सोए सभी घर। कौन कर सकता मदद तब, पुज रहीं प्रतिमां यहां पर। हर कदम पर देखता, पाषाण दिल है, पात शाही।। न्याय के हर द्वार कीं, पुज रही हैं, आज दहरीं। है नहीं रक्षक यहां कोई,