लेखिका दीपक शर्मा ''रेडियो वाली मेज़ कहाँ गई?'' गेट से मैं सीधी बाबू जी के कमरे में दाखिल हुई थी। माँ के बाद अपने मायके जाने का वह मेरा पहला अवसर था। ''वह चली गई है,'' माँ की कुर्सी पर बैठ कर बाबू जी फफक कर रो पड़े। अपने दोनों हाथों से अपनी दोनों आँखों को अलग-अलग ढाप कर। ''सही नहीं हुआ क्या? तीन महीने पहले हुई माँ की मृत्यु के समय मेरे विलाप करने पर बाबू जी ही ने मुझे ढाढ़स बँधाया था, ''विद्यावती की तकलीफ़ अब अपने असीम आयाम पर पहुँच रही थी। उसके चले जाने में ही