रामधारीसिंह 'दिनकर' की सांस्कृतिक चेतना

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संस्कृति के चार अध्यायः रामधारीसिंह 'दिनकर' की सांस्कृतिक चेतना डॉ. के0वी०एल० पाण्डेय ओज, राष्ट्रीयता और निर्भीक वैचारिकता के कवि दिनकर अपनी कविता में भावपरकरता के आधार पर जिस सांस्कृतिक चेतना से प्रेरित हैं वही उनकी महत्त्वपूर्ण कृति 'संस्कृति के चार अध्याय में विवेचन और विश्लेषण के रूप में प्रस्तुत है। यह ऐसा समाज शास्त्रीय इतिहास है जिसमें तटस्थता और वस्तुपरकता से निकले निष्कर्षोकी प्रामाणिकता है और ममत्व तथा परत्व से अविचलित रहकर चिन्तन की निष्ठा है। संस्कृति के इस भाष्य में दिनकर का अध्ययन-विस्तार और सन्दर्भों का अन्तरिक्ष चमत्कृत करता है। दिनकर भले ही इसे इतिहास नहीं बल्कि साहित्य का