---उपन्यास भाग—सात अन्गयारी आँधी—7 --आर. एन. सुनगरया, कौन दम्पति नहीं चाहेगा कि दोनों परस्पर एक दूसरे पर आसक्त हों, समर्पित हों। समग्र रूप में! जिन्दगी की आपा-धापी,