रात को घर आने के बाद सोते- सोते काफ़ी देर हो गई। घूम फ़िर कर सबका मूड अच्छा हो गया था। खूब बातें भी हुईं। बच्चों ने भी अपने विदेशी स्कूल के किस्से सुनाए। जब मैं सोने के लिए कमरे में आया तो सिर हल्का सा भारी हो रहा था। मेरे मन से उस उलझन का बोझ तो थोड़ा हल्का हो गया था जो घर में किसी के मुझ पर विश्वास नहीं करने से मुझ पर हावी थी पर उस अपमान की कसक बाक़ी थी जो सभी के सामने झूठा सिद्ध हो जाने से उपजी। मैं कमरे का दरवाज़ा थोड़ा