तो प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र के डॉक्टर की सीख के अनुसार मैंने सीट पर इत्मीनान से बैठे- बैठे भी काफ़ी समय निकाल दिया। कुछ देर तक मैं इसी तरह भीतर बैठा रहा। लेकिन कुछ देर बाद ही मुझे बेचैनी शुरू हो गई। मुझे यह भी लगने लगा कि डॉक्टर साहब ने तो शांति से अपने मन के सभी भावों पर नियंत्रण रखते हुए वहां समय गुजारने की सलाह दी थी लेकिन मैं तो भारी उद्विग्नता के साथ यहां बैठा हूं। बल्कि एक तरह से इन सब लोगों को छकाने की प्रतिशोध भरी भावना लेकर बैठा हूं। रंजिश की भावना के साथ