बैंगन ! गाड़ी रुकते ही मैं अपना सूटकेस उठाए स्टेशन से बाहर आया। एक रिक्शावाला तेज़ी से रिक्शा घुमाकर मेरे ठीक सामने आ गया। बोला- कहां चलिएगा? मैंने कहा - मानसरोवर - रखिए... रखिए सामान। उसने कहा - क्या लोगे? मैंने पूछा। - जो चाहें दीजिएगा। उसके ऐसा कहते ही मैंने सूटकेस रख दिया, फ़िर भी कहा- पैसे बताओ भई! लेकिन ये क्या? उसने बिना कुछ बोले रिक्शा चला दिया और मेरे बैठने से पहले ही तेज़ी से भगाने लगा। मैं हतप्रभ रह गया। रिक्शे वाले की आंखों पर चश्मा, कुर्ता- धोती की पोशाक, सिर पर मोटी सी लहराती चोटी...