अर्पिता और शान के इस नोकझोंक वाले पलों को प्रेम जी देख देख रहे होते है और मन ही मन कहते है तो खिचड़ी की खुशबू यहां से आ रही है।वही मैं तब से सोच रहा था कि ये दोस्त तो श्रुति की है लेकिन उससे ज्यादा क्लोज तो प्रशांत के लग रही हैं।खैर देखते हैं इस खिचड़ी की खुशबू कितनी देर तक रुक पाती है।सोचते हुए वो मुस्कुराते है और आँखे बंद कर सोने की कोशिश करने लगते हैं।त्रिशा शान के पास आ जाती है और उससे कहती है चाचू ये तो वही छवीत छि दीदी है न जो