भुलावा "स्मृति हमारी आत्मा के उसी अंश में वास करती है जिसमें कल्पना|" (मेमोरी बिलोंग्स टू द सेम पार्ट ऑफ द सोल एज इमेजिनेशन|) - अरस्तु हरिगुण को मैंने फिर देखा| रश्मि के दाह-संस्कार के अंतर्गत जैसे ही मैंने मुखाग्नि दी, उसकी झलक मेरे सामने टपकी और लोप हो ली| पिछले पैंतीस वर्षों से उसकी यह टपका-टपकी जारी रही थी| बिना चेतावनी दिए किसी ही भीड़ में, किसी भी सिनेमा हॉल में, रेलवे स्टेशन के किसी भी प्लेटफार्म पर या फिर हवाई जहाज के किसी भी अड्डे पर, बल्कि सर्वत्र ही, वह मेरे सामने प्रकट हों जाता| अनिश्चित लोपी-बिंदु पर