मैं तो ओढ चुनरिया अध्याय पाँच शाम होते ही दोनों मामा ,मां और दो संदूकों के साथ रिक्शा में बैठकर हम सब चल पङे हैं । माँ ने मुझे दुपट्टे में छिपा रखा है । बाहर तरह तरह की आवाजें आ रही हैं और मैं इन्हें बिलकुल नहीं देख पा रही । यह अहसास मुझे उन दिनों की याद करवा रहा है ,जब मेरा जन्म नहीं हुआ था । माँ कहीं बाजार जाती , तब भी मैं सिर्फ सुन पाती थी । कुछ दिखाई नहीं देता था । तब मैं कितना डर जाती थी और पैर पटकती