कहते हैं कि हर चीज़ का कभी ना कभी अंत हो जाता है लेकिन ख्वाहिशों..इच्छाओं का कोई अंत नहीं है। एक इच्छा के पूरी होने से पहले ही दूसरी बलवती हो..सिर उठा अपनी मौजूदगी दर्ज करवाने को झट से आमादा हो उठती है। ऐसी ही कुछ इच्छाऐं जो लंबे समय से अपने पूर्ण होने की बाट देख रही हैं, उन्हीं छोटी बड़ी ख़्वाहिशों की कहानी है योगिता यादव जी के उपन्यास 'ख्वाहिशों के खाण्डववन" की। यहाँ खाण्डववन से तात्पर्य एक ऐसा शहर जिसमें वास्तविकता से साथ छद्म का मेल हो।इसमें कहानी है दिल्ली महानगर के उस तथाकथित सौंदर्यीकरण एवं सुधार