अंतिम पड़ाव दारचिन दारचिन पहुँचने से पहले एक जगह पर हमारी बस बदली जानी थी और हमें चीन सरकार द्वारा मुहैया करवाई गयी बस में बैठना था । हम सब जब उस जगह की ओर बढ़ रहे थे तो अचानक सुजाता जी, लक्ष्मी, प्रशांत सब चिल्ला पड़े ''कैलाश… कैलाश…'' हम, जो पहली दफा इस यात्रा पर आए थे, वे सब बस की खिड़की से इधर-उधर देखने लगे। हमारी दाई ओर एक लम्बी-सी पर्वत श्रृंखला थी । हमें लगा वही कैलाश पर्वत है । उसे देख कर थोड़ी-सी निराशा हुई क्योंकि वह पर्वत श्रृंखला तो अन्य किसी और पर्वत श्रृंखला जैसी