मेरी और शराफ़त की पहली मुलाकात बेहद नाटकीय तरीक़े से हुई थी। भोपाल तक सोलह घंटे का सफ़र था, बस का। सारी रात बस में निकाल लेने के बावजूद अभी कुल नौ घंटे हुए थे और कम से कम सात घंटे का सफर अभी बाक़ी था। एक छोटे से कस्बे के बाहरी इलाके में सड़क के किनारे ड्राइवर ने बस रोक दी थी और ऐलान किया था कि यहां एक घंटे ठहरने के बाद बस आगे चलेगी। सड़क के एक किनारे पर एक सुलभ शौचालय बना हुआ था और दूसरी ओर ज़रा आगे जाकर एक बड़ा सा ढाबा और उससे