11एकलव्य का भक्ति भाव ‘‘ जिसके लिये हम जी जान से अपना सर्वस्व निछावर करने के लिये उद्यत रहते है, वही हमारे सामने यु़द्ध करने के लिये शस्त्र लेकर खडा हो जाय। कैसा लगेगा उस समय ? हमें लगेगा, उसे हराकर अपने अस्तित्व का एक बार और बोध करा दें।” आचार्य द्रोण बिस्तर पर पड़े पड़े यही सब सोचने लगे कि हम राजसभा और आचार्यों को लेकर बैठे रहे। पाण्डवों के तेरह वर्ष पूर्ण होने की गिनती नहीं कर पाये। युद्धभूमि में यदि भीष्म पितामाह से यह प्रश्न न किया जाता तो शायद उस समय भी हमें काल का