एकलव्य 8

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8 एकलव्य को निषाद ही रहने दें। ’’मानव जीवन में कुछ ऐसे क्षण भी उपस्थित होते है जिनमें वह अपने पूर्व कृत्यों का मूल्यांकन करने लगता है। उन क्षणों की गहरी तहों में प्रविष्ट होकर विवेचन करने का प्रवाह वह निकलता है।’’ इसी दशा में डूबे द्रोणाचार्य को गुप्तचर ने निषादपुरम की नवीन स्थिति से अवगत करा दिया था। आज अर्जुन के पांचाल से युद्ध करने हेतु चले जाने के प्श्चात् उन्हें अपने निर्णय पर बारंबार पश्चाताप आ रहा है कि उन्होंने एकलव्य को उस दिन शिष्य क्यों नहीं बनाया ? उसके पश्चात् भी इति नहीं की, उसका अंगुष्ठ