सुनंदा छोकरी की डायरी

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सूर्यबाला आज मैं कितने सुब्‍बे-सुब्‍बे उठ गई। खुशखुश बाल बनाया, पीला रिबन बाँधा। माँ के काम वाली बाई का दिया चमाचम फ्रॉक पेना। बाहर आई तो बाजू वाला करीम काका मेरे कू देखके भोंपू का माफिक हँसता था। हो-हो, सुनंदा छोकरी। ये मइ क्‍या देखता रे - इस्‍कूल का लाल रिबन नहीं, नीला स्‍कर्ट नईं। आठ बजे का बदले सात बजे इच तू चमचम फिराक पेन के तैयार... आज इस्‍कूल में फंक्‍शन होता क्‍या रे? मइ सब समजता... तेरे को बख्‍शीश मिलता न? तबीच तो तू खुशी के मारे, से पाव पन लेने को नईं आई... मैं खी...खी...खी...खी हँसी -