2 अरे ! शीशे में यह कौन था ! इतने भद्देे से कान, खिचड़ी से बाल, किसी फटे हाल भिखारी सी आँखें......... शीशे में से मेरा चेहरा भी मुझे पहचान नहीं पा रहा था. इतनी वीरानी तो पहले कभी इस चेहरे पर नहीं थी. क्या मुझमें कोई और आकर रहने लगा था ? मैं यह सब सोच ही रहा था कि रेज़र में ब्लेड डालते हुए मेरी अँगंुली कट गई और खून बहने लगा. मैं अपने बहते खून को वाॅश बेसिन में टपकते हुए देखता रहा. मुझेे आश्चर्य हुआ कि न तो मुझेे दर्द महसूस हो रहा था और न