किन्नर ( कविता)

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रोटी रोटी हमें जीवन देती हैरोटी पाने के लिए आदमी घर छोड़ता हैऔर रोटी खाने के लिए घर आता हैरोटी जीवन देती भी हैऔरजीवन लेती भी हैरोटी के लिए मुंबई गएरामदीन,सोहन मोहन,दातारामकरीमबख्श, फत्ते खां और नूरे ईलाहीकोरोना काल में जबरोटी पाने-जुटाने में हो गए असमर्थ और लाचारतो चल पड़े रोटी खाने अपने घर, अपने गांवरेल की पटरियों पर रखते अपने छाले-फफोले वाले पांवक्योंकि सड़के अब गांव तकजाने से मना कर चुकी थींऔर बैठे थे हर चौक पर पुलिस - कोतवालवहां भी आ गईं रोटीमचलती भूख के साथनींद थी पलकों पर उमड़ीले मृत्यु की सौगातधर- धराती