26 भेार भई । मुर्गे ने बांग दी । मुद्दे अब कहॉं, मगर मुर्गो की क्या कमी । राजनीति से लगाकर साहित्य, संस्कृति, कला, पत्रकारिता, टीवी चैनल सब जगह मुर्गे बांग दे रहे है । राजनीति में मुर्गे मुद्दे तलाश रहे है । बुद्धिजीवी धूरे पर जाकर दाने तलाश रहे है । दाना मिला खाया फिर कूडे के ढेर में दाना तलाशने लग गये । फिर बांग देने लग गये । मुर्गे कभी अकेले बांग नहीं देते । वे मुर्गियों केा भी साथ रखते है । मुर्गियां अण्डे भी देती है और मुर्गे के साथ बांग भी देती है ।