रत्नावली 19

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रत्नावली रामगोपाल भावुक उन्नीस कभी-कभी जीवन में आनन्द की अनन्त सम्भावनायें दिखने लगती हैं। तब पिछले सारे घाव भर जाते हैं। युग-युग तक जीने की इच्छा होने लगती है। जो जीवन कोसा जाता था वही सराहा जाने लगता है। सिर पर रामचरित मानस की प्रति रखे सभी राहगीरों के साथ रत्नावली चलती जा रही थीं और इस तरह जाने क्या-क्या सोचती भी जा रही थीं। मानस की प्रति को राजापुर बासी क्रम से अपने-अपने सिर पर रखकर मंजिल तय कर रहे थे। रास्ते भर सभी इसी तुकतान में रहे, कब उन्हें वह पवित्र ग्रंथ सिर पर रखने