सूर्यबाला सुबह से तीन बार रपट चुकी थीं वे। एक बार, किचेन में टँगी जाली की आलमारी से खीर के लिए इलायची की डिब्बी निकालते हुए। दूसरी बार, पूजा वाले ताख से भभूती उतारते हुए। और तीसरी बार -- बाथरूम में गीला तौलिया टाँगते हुए। न, कुछ खास नहीं, बस जरा-सी कूल्हे में चिलक ..थोडी छिली, रक्ताभ कोहनी और कनपटी पर आलमारी के कोने की खरोंच ... लेकिन चोट के दंश और घाव की पीडा सहलाने का होश और फुरसत कहाँ? पति पर इस समय पिता हावी है। उनकी चोट से ज्यादा, एयरपोर्ट पहुँचने में होती देर से चिंतित। चिंताकुल