रोशनीघर की लड़की रात का गहरा सन्नाटा था, कभी कभी कुत्तों के भौंकने की आवाज़ नीरवता को तोड़ देती थी। कई बार ऐसा होता कि नींद नहीं आती थी खाण्डेकर जी को आज भी ऐसा ही हो रहा था, बिस्तर पर करवटें बदलते परेशान हो वो बाहर आ गए, अंधेरी सी रात में बस तारों की रोशनी। टिमटिमाते तारे मानो कुछ कह रहे हों। वो बाहर लाॅन में घूमने लगे, मन नहीं लगा तो बाहर निकल लिए, रात के कोई दो बजे थे, वो धीरे-धीरे सुस्त कदमों से चहलकदमी करते से बस यूंही चल रहे थे। सामने दूरदूर तक समन्दर