अध्याय -11 दिनही चढ़े दिन उतरै , सो तो प्रेम न होय अघट प्रेम पिंजर बसै,प्रेम कहावै सोय अकथ कहानी प्रेम की, कहू कही न जाई गूंगे केरी सरकए, जो बैठे मुस्काए कहना था सो दिया, अब कुछ कहना नाही एक रही दूजी गई, बैठा दिया मांहि नर और नारी अपनी प्राकृतिक एवं सांचनात्मक भिन्नता की तरह प्रेम के प्रति अपनी आस्थामें भी भिन्नता रखते हैं । नारी अपनी अतिशय कोमलता, नैसर्गीक संवेदनशीलता एवं अपनी सामाजिक स्थिति के चलते